हथनी लक्ष्मी ने मनाई आज़ादी की दसवीं वर्षगाँठ,जिसकी कहानी क्रूरता पर करुणा की विजय का प्रतीक है
लक्ष्मी, वह हथिनी है, जिसकी कहानी क्रूरता पर करुणा की विजय का प्रतीक है, आज यह पल अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपनी स्वतंत्रता की10वीं वर्षगांठ मना रही है। कठिनाई और दुर्व्यवहार भरे जीवन से बचाई गई, लक्ष्मी की मुंबई की सड़कों से वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के मथुरा स्थित हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र (ई.सी.सी.सी) के सुरक्षित आश्रय तक की यात्रा भारत भर में भीख मांगने वाले हाथियों के सामने आने वाली चुनौतियों की एक मार्मिक याद दिलाती है।
28 साल से अधिक उम्र और लगभग 8 फीट लंबी, लक्ष्मी मथुरा में वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र में आजादी के 10 साल पूरे होने का जश्न मना रही है। रेस्क्यू से पहले, लक्ष्मी का जीवन दुर्व्यवहार और शोषण की एक दुखद कहानी थी। कैप्टिव हथनी के रूप में उसे मंदिरों के बाहर भिक्षा मांगने के लिए मजबूर किया जाता था।
मुंबई की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर चलते हुए, लक्ष्मी के नाजुक पैरों में काफी दिक्कतें आई। उसके आहार में मुख्य रूप से मिठाइयाँ और तले हुए खाद्य पदार्थ शामिल थे, जिससे उसका मोटापा बहुत ही अधिक हो गयाl
लक्ष्मी को लोग सड़क पर रोज़ सैकड़ों वड़ा पाव खिलाते थे, जो मुंबई का प्रमुख स्ट्रीट फूड है, वह मुश्किल से बिना किसी सहारे के खड़ी हो पाती थीं और इस ही कारण उसका वजन लगभग 1800 किलोग्राम अधिक था। उसका युवा शरीर अत्यधिक वजन का सामना करने के लिए तैयार नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप उसे गंभीर ऑस्टियोआर्थराइटिस और शरीर के अंगों में दर्द होने लगा।
2013 में लक्ष्मी का रेस्क्यू उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के हस्तक्षेप के बाद उसे हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र लाया गया। उस समय उसका वजन लगभग 5,000 किलोग्राम था, जिसे कम करना वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के पशु चिकित्सकों और देखभाल करने वालों की समर्पित टीम का उद्देश्य था।
सावधानीपूर्वक, आहार और व्यायाम के माध्यम से उसका वजन नियंत्रित किया गया। दैनिक सैर, जो कभी उसके लिए एक दर्दनाक परीक्षा थी, उसकी भलाई के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई। अब केंद्र की निवासी, लक्ष्मी ने उस अतिरिक्त वजन को कम कर लिया है जो एक समय उस पर बोझ था। उसका आनंदमय व्यक्तित्व और उत्साही व्यवहार उसकी उल्लेखनीय यात्रा का प्रमाण है।
वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस के सह-संस्थापक और सी.ई.ओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “जहां लक्ष्मी का परिवर्तन एक उत्साह का कारण है, वहीँ यह जागरूकता और कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है। उसकी कहानी पीड़ा और शोषण के जीवन में मजबूर भीख मांगने वाले हाथियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालती है। वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस कैद में मजबूर हाथियों को बचाने और पुनर्वास करने के अपने मिशन के लिए प्रतिबद्ध है।
वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा, “हमारी देखरेख में आने वाले हाथी आमतौर पर कुपोषण और दुर्बलता से पीड़ित होते हैं। लेकिन, जब हमने लक्ष्मी को देखा, तो इतने अव्यवस्थित वजन वाली हथिनी को देखकर हम चौंक गए।