कुंभ में नागाओं को देख किशोरी की वैराग्य में लगी लगन
आगरा की 14 वर्षीय किशोरी ने लिया संन्यास, बनीं गौरी गिरि महारानी
प्रयागराज। कुंभ के नजारे ने उस किशोरी का जीवन बदल दिया। नागाओं को देखकर उसने वैराग्य धारण करने की ठानी तो फिर किसी का न मानी। हारकर परिजनों ने उसे जूना अखाडे को दान कर दिया। संत परंपरा के अनुसार किशोरी को मंत्रों के बीच गंगा स्नान कराया गया। वैदिक रीति के अनुसार गुरु-शिष्य परंपरा में संन्यास दीक्षा दिलाने की रस्म निभाई जा रही है। फिलहाल किशोरी अपने माता-पिता और छोटी बइन के साथ अखाड.े के शिविर में रह रही है। उसका नाम भी बदलकर गौरी गिरि महारानी रखा गया है।
वैराग्य जीवन धारण करने वाली किशोरी है आगरा की राखी सिंह घाकरे। उसके पिता दिनेश सिंह धाकरे पेठा कारोबारी हैं। 14 वर्षीय राखी सिंह का नाम अब गौरी महारानी हो गया है। वह चार दिन पहले ही परिवार के साथ महाकुंभ में आई थी। नागाओं को देखकर उसने संन्यास लेने का फैसला लिया। परिवार के साथ जाने से इंकार कर दिया। बेटी के जिद के आगे माता-पिता भी नतमस्तक हो गए और उन्होंने उसे कौशल गिरि महाराज को दान कर दिया।
काॅन्वेंट स्कूल की होनहार छा़त्रा है गौरी महारानी
पेठा कारोबारी संदीप उर्फ दिनेश सिंह धाकरे के परिवार में पत्नी रीमा सिंह और दो बेटियां 14 वर्षीय बेटी राखी सिंह और छोटी बेटी सात वर्षीय निक्की सिंह हैं। राखी सिंह स्प्रिंगफील्ड इंटर काॅलेज में नौवीं और निक्की दूसरी कक्षा की छात्रा हैं। दिनेश सिंह का परिवार श्रीपंचदशनम जूना अखाडे के महंत कौशल गिरि से सालों से जुडा है। रीमा सिंह के मुताबिक राखी पढाई में होशियार है। वह बचपन से ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने का सपना संजोए हुए थी। कुंभ मेले में आने के बाद उसका विचार बदल गया। चार दिन पहले वह अपने परिवार के साथ कुंभ में आध्यात्मिक गुरु कौशल गिरि की शरण में पुण्य लाभ के लिए आया था। बेटी की इच्छा के अनुसार उन्होंने उसका गुरु परंपरा के तहत दान कर दिया।
सनातन का करेंगी प्रचार
गौरी गिरि महारानी कहती हैं कि बचपन से आईएएस बनने का सपना था, लेकिन महाकुंभ में आने के बाद उनका विचार बदल गया। इसलिए अ बवह संन्यास की दीक्षा लेकर सनातन की धर्म ध्वजा के नीचे धर्म का प्रचार करना चाहती हैं।
बेटी की इच्छा के आगे मजबूर हूं
पिता दिनेश बेटी को बहुत प्यार करते हैं। कहते हैं कि उसे भगवा वस्त्र में देख मन दुखी हो जाता है। आंखों से आंसू छलकने लगते हैं। फिलहाल खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हूं। बेटी की इच्छा के आगे मजबूर हूं।
12 साल करना होगा कठोर तप
महंत कौशल गिरि के मुताबिक संन्यास परंपरा में दीक्षा लेने की कोई उम्र नहीं होती। संन्यासी जीवन धर्म ध्वजा और अग्नि के सामने धूनी में बीतता है। गौरी गिरि महारानी को बारह साल तक कठोर तप करना होगा। अखाडे में रहकर वह गुरुकुल परंपरा के अनुसार शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करेंगी। जहां उसे वेद उपनिषद और धर्म ग्रंथ में पारंगत किया जाएगा। इसके बाद संन्यासी गौरी गिरि महारानी अपने तप साधना के साथ सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करेंगी।