मुस्लिमों ने नीतीश-चिराग की इफ्तार पार्टी का किया बायकाॅट

बिहार के सात मुस्लिम संगठनों के बहिष्कार का बिहार विधानसभा चुनाव पर क्या पडेगा असर
पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है। दरअसल, बिहार के सात प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने नीतीश की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने का एलान किया है। इन संगठनों का कहना है कि यह फैसला पूरी सूझबूझ और रणनीति के साथ लिया गया है। गौरतलब है कि नीतीश की इफ्तार पार्टी रविवार को पटना में होनी थी। ऐसे में मुस्लिम संगठनों के इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
इमारत-ए-शरिया, जमात-ए-इस्लामी, जमात अहले हदीस, खानकाह मोजिबिया, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और खानकाह रहमानी ने रविवार को नीतीश द्वारा पटना में आयोजित की जा रही इफ्तार से दूरी बना ली है। मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुंह में राम और बगल में छुरी वाली राजनीति कर रहे हैं। इमारत शरिया के जनरल सेक्रेटरी मुफ्ती सईदुर्रहमान ने कहाकि केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू ने समर्थन का फैसला लिया है। उस नजरिए से हमने मुख्यमंत्री की इफ्तार पार्टी का बायकॉट किया है। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में आरोप लगाया कि ये नेता सरकार के संविधान विरोधी कदमों का समर्थन कर रहे हैं।
बिहार की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो राज्य की 17 फीसद से अधिक आबादी हैं। यह मतदाता वर्ग परंपरागत रूप से राजद, कांग्रेस और वाम दलों की ओर झुका रहता है, लेकिन जदयू ने भी वर्षों से एक विशेष वर्ग का समर्थन हासिल किया है। हालांकि, जदयू की भाजपा के साथ बढ़ती नजदीकियों और सीएए, तीन तलाक कानून जैसे मुद्दों पर उनके रुख ने मुस्लिम मतदाताओं को असमंजस में डाल दिया है। अब सात बड़े मुस्लिम संगठनों द्वारा नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी के बहिष्कार की घोषणा के बाद, मुस्लिम समुदाय में उनके प्रति भारी असंतोष पनप रहा है। बिहार में 10 से 15 फीसद मुस्लिम मतदाता जदयू को समर्थन देते थे, वे पूरी तरह से राजद के पक्ष में शिफ्ट हो सकते हैं। यह बदलाव आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में साफ दिखाई दे सकता है। मुस्लिम और यादव (एमवाई) समीकरण पहले से ही राजद की राजनीति की रीढ़ रहा है। अगर मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से जदयू से कटकर राजद के पक्ष में चला जाता है, तो यह जदयू के लिए एक बड़े सियासी झटके से कम नहीं होगा।
चिराग पासवान की इफ्तार पार्टी से भी मुस्लिम संगठनों ने बनाई दूरी
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल नहीं होने की घोषणा की है। पासवान ने इस फैसले का विरोध किया है। गौरतलब है अरशद मदनी ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा था कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान जैसे स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष नेताओं द्वारा आयोजित इफ्तार, ईद मिलन और ऐसे अन्य समारोहों में भाग नहीं लेगा।
सोमवार को अपनी पार्टी द्वारा आयोजित किए जा रहे इफ्तार की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे पासवान ने कहाकि मैं मदनी साहब का बहुत सम्मान करता हूं। मैं उनके फैसले का सम्मान करता हूं, लेकिन, मैं उनसे आग्रह करूंगा कि वे इस बात पर थोड़ा विचार करें कि क्या राष्ट्रीय जनता दल जैसे हमारे विरोधी जो खुद को मुसलमानों का पैरोकार मानते हैं, क्या अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की रक्षा करने में सफल हुए हैं? हाजीपुर के सांसद ने कहाकि मेरे दिवंगत पिता और राजनीतिक गुरु रामविलास पासवान ने एक बार अपना पूरा राजनीतिक जीवन दांव पर लगा दिया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बिहार का मुख्यमंत्री एक मुसलमान बने। चिराग पासवान ने राजग में अपने साथी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर किये जा रहे व्यक्तिगत हमलों पर भी नाराजगी जताई, जिनके ‘मानसिक स्वास्थ्य’ और बिहार पर शासन की उनकी क्षमता पर हाल के दिनों में बात की जा रही है। हालांकि चिराग ने कुमार की अपराध की घटनाओं को रोकने में असमर्थता पर चिंता व्यक्त की। नीतीश कुमार के पास गृह विभाग भी है। पासवान ने दलितों, विशेषकर पासवान समुदाय के खिलाफ लक्षित हमलों को भी रेखांकित किया और दावा किया कि ये हमले राजनीति से प्रेरित हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव बस कुछ ही महीने दूर हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा, दुर्भाग्य से मेरी पार्टी की राज्य विधानसभा में उपस्थिति नहीं है और वह यहां सरकार का हिस्सा नहीं है। हस्तक्षेप करने की हमारी क्षमता सीमित हो सकती है, लेकिन मैं लगातार मुख्यमंत्री के संपर्क में हूं।